सरकार वस्तुपरक कसौटी के आधार पर विज्ञापन देने की अपनी नीति बना सकती है।
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सरकार वस्तुपरक कसौटी के आधार पर विज्ञापन देने की अपनी नीति बना सकती है।
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क्या कविता में लोकतंत्र तब तक क़ायम हो सकता है जब तक कि कवियों और आलोचकों की लोकतंत्र में निष्ठा न हो? कवि को आलोचक तब तक ही अच्छे लगते रहें जब तक कि वे उस की प्रशंसा करते रहें? अपने अलावा अन्य कवियों की प्रशंसा में अपनी ' हेठी ' क्यों माननी चाहिए? महिला कवि की प्रशंसा हो तो उसे ' लैंगिक पक्षपात ' के रूप में ही क्यों देखा जाना चाहिए? कविता की अथवा किसी भी विधा में प्रस्तुत रचना की किसी वस्तुपरक कसौटी का तो मान किया ही जाना चाहि ए.